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ಸಂಗ್ರಹ
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October 17, 2011
यत् योगिभिः भव भयार्थि विनाश योग्यं
आसाध्य वन्दितं अतीव विविक्त चित्तैहि
तद् वः पुनातु हरि पाद सरोज युग्मं
आविर्भवित क्रम विलन्कित भूः भुवः स्वः
- मार्काण्डेय पुराण।
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